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बिहार: क्या सच में चुनाव हाथ से फिसल गया…

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सवाल पान की दुकान पर खड़े लोगों का

न्यूज ब्यूरो। क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी… संपूर्ण बहुमत के साथ… तीसरी बार फिर से मजबूत सरकार का गठन् करेगी… या देश एक बार फिर… गठबंधन की दौर में लौट जायेगा? चौथे चरण के मतदान के बाद… कॉग्रेस ये क्यों कहने लगी है… कि चुनाव… नरेन्द्र मोदी के हाथों से फिसल चुका है? स्वयं बीजेपी के नेताओं के सुर… क्या सच में बदलने लगा है? बीजेपी के नेता अब 400 पार… वाले नारों से बचते हुए क्यों नजर आने लगें हैं? ईडी की सक्रियता में अचानक कमी क्यों आ गई? ऐसे और भी तमाम सवाल… ये सवाल… मेरे नहीं है। बल्कि, ये सवाल उन लोगों का है… जिनको राजनीति के तमाम धुरंधर… हासिए पर ढ़केल चुकें है।

न्यूज रूम की चकाचौध से बाहर भी है सवाल

बिहार के सुदूर गांव में चाय- नाश्ता के दुकान पर बैठे… किसान हो या दिन भर मेहनत करने के बाद… शाम में फुर्सत से बैठे मजदूर…। आज की दौर में सवाल, उनके जेहन में भी हिलोरे मार रही है। हालांकि, उनके राजनीतिक समझ को… अमूमन गंभिरता से नहीं लिया जाता है। दूसरी ओर मेरा मानना है कि इन्हीं सवालों के दायरे में बिहार की राजनीति को समझना होगा। करबट बदलती बिहार की राजनीति की अंगराइयों को समझना होगा। युवाओं के अरमानों को समझना होगा। कहतें हैं कि बिहार की राजनीति को न्यूज रूम की चकाचौध में नहीं देखा जा सकता है। बल्कि, गली- मुहल्लों में… नुक्कड़ पर और पान की दुकान पर खड़े लोगों की बातचीत में.. इसको बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

किस जाति का टिकट कटा इसका भी असर

तिरहुत सहित बिहार के राजनीति का अपना एक अलग मिजाज है। किस जाति को कितने टिकट मिले और किस जाति का टिकट कट गया…? बिहार की राजनीति में इसके बड़े मायने है। करीब एक दशक बाद… बिहार के कोर वोट में सेंधमारी की रणनीति… क्या अब कारगर आयाम लेने लगा है? बिहार के शिवहर और सीतामढ़ी में टिकट कटने से… वैश्य समुदाय में एनडीए के प्रति नाराजगी है। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि अधिकांश वैश्य मतदाता… आज भी मोदी का नाम ले रहें हैं। पर नेताओं के नाराजगी का भी असर है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

बिहार में कुर्मी और कुशवाहा क्या करेगा

कुर्मी और कुशवाहा वोटर में भी असंतोष से इनकार नहीं किया जा सकता है। कुर्मी समाज… विशेषकर एलजेपी के उम्मीदवार के प्रति बहुत रुचि नहीं दिखा रहें हैं। कहा जाता है कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से हट कर… चुनाव लड़ा। विशेष करके जेडीयू के खिलाफ… उन्होंने खुला मुहिम चलाया। जेडीयू को इसका नुकसान हो गया और बिहार की राजनीति में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। कुर्मी समुदाय के प्रबुद्ध मतदाता… लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान से हिसाब चुकता करने के मूड में बताये जा रहें है। हालांकि, खुल कर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। पर अंदरखाने इस बात की चर्चा है। चाय- पान की दुकान पर खड़े लोगों की बात को सुने… तो आपको इसका अंदाजा… हो जायेगा।

हाजीपुर में कुशवाहा सम्मेलन के संकेत

कुशवाहा समाज में भी अंदरखाने असंतोष की चर्चा है। यह असंतोष भी छिटफुट.. आकार लेने लगा है। हाजीपुर में कुशवाहा समाज का सम्मेलन… इसका सबसे बड़ा मिशाल है। समस्तीपुर, उजियारपुर और मोतीहारी में कुशवाहा समाज… क्या करेगा… यह बड़ा सवाल है। कारकाट पर भी इसका असर पड़ेगा क्या? हालांकि, यह भी सच है कि कुशवाहा समाज के नेता इस असंतोष को पाटने में लग चुके है। कहतें हैं कि समय रहते कुशवाहा वोट के बिखराव को रोका नहीं गया तो इस समाज का उभरता हुआ सितारा… यानी बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की राजनीतिक करियर… दाव पर होगा।

ब्राह्मण और राजपूत वोटर भी असमंजस में

शिवहर में ब्राह्मण वोटर… एनडीए के प्रति मुखर नहीं है। वैशाली में भी ब्राह्मण वोट पर आरजेडी की नजर है। इसी प्रकार सीतामढ़ी में राजपूत वोटर एनडीए के प्रति अभी तक मुखर नहीं हुआ है। वैशाली और मुजफ्फरपुर में भूमिहार वोटर को लेकर असमंज है। वैशाली में आरजेडी ने भूमिहार समाज के मुन्ना शुक्ला को अपना उम्मीदवार बना कर… बड़ा खेला कर दिया है। मुजफ्फरपुर और हाजीपुर लोकसभा में भी इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह सवाल… बड़ा होने लगा है कि भूमिहार समाज क्या करेगा?

निषाद समाज एकजुट हो गया तो क्या होगा

बिहार में निषाद वोट पर सभी की नजर टिकी है। कहतें हैं कि निषाद वोट पर वीआईपी के मुकेश सहनी का मजबूत प्रभाव है। मुकेश सहनी… इंडिया गठबंधन के साथ है और ताबतोड़ प्रचाार कर रहें हैं। जाहिर है इसका खामियाजा भी बिहार में एनडीए को हो सकता है। कुल मिला कर बिहार की राजनीति में एनडीए का विजय रथ…क्या हिचकोला ले रहा है? फिलहाल यह बड़ा सवाल है और इसका जवाब जानने के लिए इंतजार करना होगा। इस बीच मोदी मैजिक भी है। कहतें हैं कि मोदी मैजिक काम कर गया तो हालात बदलते देर नहीं लगेगा।

स्थानीय सांसद के प्रति जबरदस्त असंतोष

बिहार में एक और बड़ा फैक्टर काम करने लगा है। वह है, स्थानीय सांसद के प्रति असंतोष…। दरअसल, अधिकतर सांसद… पिछले पांच वर्षो में… लोगों के बीच सक्रिय नहीं रहे। इससे लोगों में बहुत गुस्सा है।  गुस्सा… एनडीए के वर्कर में भी है। ऑफ द रिकार्ड… वैशाली के कई समिर्पत कार्यकर्ताओं ने बताया… कि उनकी भी नहीं सुनी जाती है। जाहिर है… कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव है। दूसरी ओर… यह भी सच है कि इनमें से अधिकांश लोग… आज भी मोदी को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहतें है। बेशक पीएम मोदी के चुनाव प्रचार का इन पर असर पड़ेगा। पर, कितना… ? यह देखना अभी बाकी है।

क्या हुआ मुंगेरीलाल आयोग का

वर्ष 1971 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग का गठन किया था। तब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस आयोग को महंगाई, भ्रष्टाचार ओर बेरोजगारी दूर करने के उपाये बताने थे। इससे भी अहम बात ये, कि मुंगेरी लाल आयोग को लोकतंत्र बचाने के लिए… उपाये देने को कहा गया था। इतना ही नहीं। बल्कि, मुंगेरीलाल आयोग को बिहार में समाजिक परिवर्तन के लिए अंतर्जातीय विवाह और समाजिक विभेद यानी जातिवाद को खत्म करने के उपाय पर… सुझाव देने थे। मुंगेरीलाल आयोग ने कई मुश्किल सुझाव दिए। पर बिहार की राजनीति… आज भी जाति की उसी दल-दल में फसी है।

जेपी आंदोलन से निकले नेताओं की हकीकत

जिन लोगों ने समाजिक एकीकरण का नारा बुलंद किया था…। जेपी आंदोलन के बाद उनमें से कई… बिहार के सत्ताशीर्ष पर रहे। स्व. कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार… इसी जेपी आंदोलन की उपज है। बावजूद इसके… बिहार की राजनीति से… जातिवाद… खत्म नहीं हुआ। बल्कि, और बढ़ गया। कह सकतें है कि जाति की राजनीति… संगठित तौर पर विभत्स रूप धारण कर चुका है। जड़ पकड़ चुका है।  इसमें हमारे रहनुमाओं की बड़ी भूमिका है। यानी बिहार की राजनीति आज भी जाति की मजबूत दीवारों में कैद होकर… सिसकिया ले रही है। आलम ये हो गया कि उम्मीदवार… चाहे, कितना भी दबंग हो… जाति के नाम पर… एक वर्ग का उसको समर्थन मिलता ही है… गठबंधन… यानी समीकरण का वोट भी उसके साथ होगा ही होगा। इसके अतिरिक्त थोड़े से और वोट का जुगाड़ करके… यदि वह जीत गया… तो बाद में सहयोग की उम्मीद करना… कितना उचित होगा… ?

फोब्स की रिपोर्ट से उत्साहित है कॉग्रेस

अब चर्चा के दूसरे पहलू पर आते है। कॉग्रेस समर्थक कहने लगें हैं कि चुनाव… मोदीजी के हाथ से निकल चुका है। ऐसे लोग महंगाई और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा मानते है। जबकि, एनडीए का पूरा फोकस राष्ट्रवाद और विकास पर केन्द्रीत है। सवाल उठता है कि कॉग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के लोग ऐसा क्यों बोलते है? दरअसल इसी वर्ष के फरबरी महीने में फोब्स की एक रिपोर्ट आई थी1 इसी रिपोर्ट को बना कर कॉग्रेस… बहुत उत्साहित हो रही है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी एन.एस.ओ. के हवाले से फोब्स ने महंगाई और बेरोजगारी को लेकर… एक लेख प्रकाशित किया था। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में बेरोजगारी दर 5.42 प्रतिशत था, जो मोदी कार्यकाल में बढ़ कर 6.8 प्रतिशत हो गया है।

महंगाई और बेरोजगारी बनेगा मुद्दा

कॉग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के उत्साह का कारण ये है कि सर्वे में 27 फीसदी लोगों ने माना है कि भारत में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। जबकि, 23 फीसदी लोग महंगाई को बड़ा मुद्दा मानते है। दूसरी ओर विकास और राष्ट्रवाद के साथ मात्र 15 फीसदी के खड़ा होने से… इंडिया गठबंधन के नेताओं का उत्साह दूना हो गया है। क्योंकि, इंडिया गठबंधन वाले नेता… अक्सर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहें है। जाहिर है.. यदि यह मुद्दा लोगों को पसंद आ गया तो इसका लाभ मिलना लाजमी है। अब देखना है कि मतदताओ के दिलों दिमाग पर कौन सा मुद्दा भारी पड़ता है?


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